Saturday, 23 September 2017

यूँ ही.....



यूँ  ही.....


यूँ ही कुछ केह दिया तुमने
यूँ  ही कुछ सुन लिया हमने 
लफ्ज़ों के मिजाज़ कुछ ऎसे हुए 
की शोर के जैसे दिल में उतरने लगे 

धडकनों कि आहट थम सी गई 
नज़रों ने भी झुकना क़ुबूल किया 
शाम भी मरहूम सी लगने लागि 
महसूस भी बस अब दर्द ही हुआ 

आपको इबादत बनाया था हमने 
आपने तो हस्ती ही बदल दी हमारी 
दिल के दर्मयाँ छुपाया था हमने 
हादें उसी दीवार की तोर दी हमारी 

इक फ़ूल की तरह शादाब होने की ख्वाहिश थी 
अब तस्सवुर में भी ग़म नज़र आता है 
जिंदिगी के इस मोड़ पे अब 
एतबार-ऐ -गुमान ही दीदार हो जाता है 



Priya H. Rai

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